शायर हूँ यारो शायरी के लिये ..
Sunday, 20 August 2017
बादल की गडगडाहट भी थी बिजलियों का अभिमान भी था,
बारिश की रुसवाई भी थी रोकने को रास्ता तूफ़ान भी था,
कैसे रुक जाता इन सब से हार के आसमा
तुझे पाने की जिद्द भी थी और दिल के दरिया में उफान भी था..
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